साजिश 1
नितिन पसीना पसीना होते हुए नींद से जाग गया। बहुत डरावना सपना था, लग रहा था कि कोई उसका गला पकड़ना चाहता था।
सर्दियों का मौसम था। रात्रि का सन्नाटा अपने जोरों पर था। चारों ओर नीरवता फैली हुई थी कि सुई गिरने की आहट भी आसानी से सुनाई पड़ सकती थी। रात्रि का दूसरा पहर शुरू हो चुका था। नितिन अग्रवाल की कोठी अँधेरे में नहाई हुई थी। जहाँ-तहाँ नाइट बल्ब अपना मद्धिम प्रकाश फैला रहे थे। दो चौकीदार अपनी ड्यूटी पर तैनात थे। कोठी के सभी सदस्य नितिन के पापा मम्मी और उसकी छोटी बहन कनु बगल वाले कमरे में सुख की नींद सो रहे थे।
लेकिन नितिन अपने कमरे में जग रहा था और विचारों में खोया हुआ था। अभी थोड़ी देर पहले ही उसने एक भयावह सपना देखा था। सपना देखने पर डर के कारण एक चीख उसके मुँह से निकल गई थी और वह जग गया था । जागने पर खिड़की की ओर देखा जो कि पूर्ववत खुली हुई थी और ठण्डी हवा के झोंके अन्दर आ रहे थे। वह सपना भूल चुका था और पसीने से तर हो गया था।
शाम से ही उसे हल्का बुखार आ गया था जिसकी वजह से उसने खाना नहीं खाया था इसलिए उसे कमजोरी महसूस हुई, वह उठ न सका।
अभी वह सोच ही रहा था कि सपना क्या देखा था कि उसे किसी के आने की आहट सुनाई पड़ी।
वह चौकन्ना हो गया कि इतनी रात गए कौन हो सकता है?
थोड़ी देर तक वह स्थिति का जायजा लेता रहा फिर उसने अपनी एक आँख धीरे से खोलकर खिड़की की ओर देखा तो वहाँ उसे दो आदमियों की परछाईं दिखाई दी।
बाहर केवल नाइट बल्ब जल रहा था इसलिए वह सूरत अच्छी तरह नहीं देख पाया। फिर एक भारी आवाज सुनाई दी-जैक देखो कौन चीखा था। क्या आज खाने में नींद जीवन
की गोलियाँ अच्छी तरह नहीं मिलाई गई थीं। इस तरह तो हमारा भंडाफोड़ हो जाएगा।
दूसरी आवाज आई-अभी देखते हैं बॉस, फिर टॉर्च की रोशनी का प्रकाश अन्दर फेंका जाने लगा।
नितिन बिल्कुल निश्चल पड़ा रहा जैसे गहरी नींद में हो। थोड़ी देर बाद जब उसने समझ लिया कि टॉर्च की रोशनी बन्द हो गई है तो उसने एक आँख फिर खोलकर देखा कि वे साये अभी भी वहीं खड़े थे।
भारी आवाज फिर आई-जैक माल बगीचे में पहुंचा दिया है न? देखो सावधानी से उस खोखले के अन्दर रखना कोई जान न पाए।
दूसरी आवाज आई थी-अच्छा बॉस ।
फिर फुसफुसाती हुई आवाज आई- अच्छा हम आज से पाँचवें दिन आएँगे। और फिर पदचाप दूर होती हुई चली गईं।
इस घटना से नितिन के शरीर में डर और घबराहट की एक नई लहर दौड़ गई जैसे उसने बिजली का नंगा तार छू लिया हो। वह जैसे-तैसे करके खिड़की तक पहुँचा और देखा कि-वे दोनों आदमी अपना चेहरा दाढ़ी व मूँछों से अच्छी तरह ढंके हुए हैं। ताकि उन्हें कोई भी पहचान न सके।
हल्का प्रकाश होने के कारण वह उन्हें अच्छी तरह नहीं देख पाया। एक चला गया और एक खड़ा रहा। इतने में ही नितिन का सिर चकराने लगा और वह वापस पलंग पर आ गया।
वह सोचने लगा-अच्छा हुआ जो रात को उसने खाना नहीं खाया था। नहीं तो उसे तो पता ही नहीं चलता कि क्या कांड हो रहा है।
सोचते-सोचते न जाने कब उसकी आँख लग गई। सुबह उठते ही रात की घटना उसकी आँखों के सामने घूम गई । उसे लगा कि जरूर आसपास कोई गड़बड़ है।
रात्रि की घटना ने उसमें फुर्ती ला दी थी और सारी बीमारी लापता हो गई थी।
रोजमर्रा के कार्यों से निबट कर थोड़ा नाश्ता किया।
पेट में थोड़ा बहुत खाना पहुँचने के बाद वह सोचने लगा कि अब उसे क्या करना चाहिए। किस तरह इस रहस्य का पर्दाफाश होगा।क्या पुलिस को बताए? क्या खुद जासूसी करे?
अभी वह इन्हीं विचारों में उलझा था कि दरवाजे पर दस्तक हुई। उसने किबाड़ खोले तो देखा कि उसका घनिष्ठ मित्र विशाल खड़ा हुआ था।
उसने नितिन से पूछा-कहो यार कौन-सा रोग लगा है। अभी जिन्दा तो हो, गनीमत है।
नितिन तो विशाल को देखकर बहुत खुश हो गया था कि अब वह उसका दर्द बॉट सकेगा।
विशाल ने फिर चहकना शुरू कर दिया-एक आध शिकार किया है क्या?
विशाल जानता था कि जब भी वह बीमार होता है किसी दार्शनिक के समान कोई न कोई उलझन ले बैठता है।
नितिन ने विशाल का हाथ पकड़ते हुए कहा-अरे विशु मेरा तो सिर करा रहा है, तू अच्छा आ गया। हाँ, एक शिकार है। कहकर हल्के से एक आँख दबा दी। जिसका अर्थ विशाल समझ गया कि जरूर कोई काम की बात है।
उसने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा-अमाँ यार मुझे पहले आंटीजी से तो मिल आने दे, नहीं तो मेरे कान खींचेंगी और तेरी अपील सुनने के लिए जरा दिमाग गर्म करने के लिए एक कप चाय तो पी आने दे।
वह अन्दर रसोईघर में घुस गया और नितिन हुँझला उठा। वह अपने दिल की बात कहने के लिए बेचैन हुआ जा रहा था।